— हर रिश्ता कुछ चाहता है —
हर रिश्ते से , हर रिश्ते का
कुछ न कुछ तो नाता होता है
नाता न होता अगर दुनिआ में
तो कैसे कोई ये रिश्ते निभाता है
चाहे रिश्ता पिता का हो या माता का
बेटे का हो या बेटी के दुलार का
मतलब से जुड़े होते हैं रिश्ते
वर्ना कहाँ किसी का किसी से कोई नाता है
न जाने किस कर्म की वजह से
कौन कहाँ किस जगह जन्म पाता है
निभाना चाहता तो है हर माता पिता
पर आखिर संतान के आगे झुक जाता है
मतलब की भरी इस दुनिआ में
सब का मतलब से ही तो नाता है
काम हो जाए तो गुणगान करते सब
नहीं तो कौन किसी को सुहाता है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ