हर फसाना आजकल……..
ग़ज़ल
अश्क में डूबा हुआ है हर फ़साना आजकल,
मुस्कुराए हो गया है इक ज़माना आजकल।
खुद परस्ती बन गई बुनियाद जब सम्बन्ध की,
हो गया मुश्किल बहुत रिश्ते निभाना आजकल।
हम जला बैठे हवन में उंगलियां जिनके लिए,
चाहते हैं वो ही हम को आजमाना आजकल।
जिनका ये दावा कि जां दे देंगे जब चाहोगे तुम,
रोज वो ही कर रहे हैं इक बहाना आजकल।
और भी अक्सर हमें अब याद आते हैं वो दिन,
चाहते हैं हम जिन्हें दिल से भुलाना आजकल।
कल बुलंदी छूके जो इतरा रहा था शान से,
मारता है ठोकरें उसको ज़माना आजकल।
आज अपने ही नगर में हो गए हम अजनबी,
ढूंढते फिरते हैं अपना आशियाना आजकल।
“आरसी” क्यों तंग हैं अब ज़िन्दगी के काफ़िये,
हो रहा दुश्वार ग़ज़लों में निभाना आजकल।
–आर० सी० शर्मा ”आरसी ”