Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Dec 2020 · 3 min read

हर पल एक नया अहसास !अलविदा बीस इक्कीस का आगाज !!!

बीत रहा जो पल, बनने वाला है कल
कल जिसे हमने जी लिया वह पल,
और आने वाला है जो पल
वह भी आज से शुरू होकर बन जाएगा कल,
हर पल बीतने के साथ खो रहा है अपनी पहचान,
और जगा रहा है उम्मीदों का एक नया जहान,
जीने की लालसा, जीने की उमंग,
जीने का तरीका, जीने का ढंग,
जीने का संघर्ष, जीने का जुझारुपन,
आसानियों से भरपूर हो या कठिनाइयों से संपन्
जीने का अभियान और जीने की अभिलाषा,
कभी उल्लास की ताजगी, कभी कुंठा भरी निराशा,
कभी हतासा का माहौल, कभी मीठाश का आभास ,
हर पल एक नया अहसास !

पल जो बीतते बीतते बन गया कल !!
************”**”**************
पल बीता,
पल पल,
निश्छल,
अविरल,
अविकल,
हर क्षण,
हर घड़ी,
मिनट दर मिनट,
घण्टों में गया बदल,
और बढ़ता रहा,
अविचल,
सुबह से दोपहर,
दोपहर से सांझ तक,
नहीं किया विश्राम,
पहुंच गया रात के प्रहर तक,
अविराम,
और दे गया एक नाम,
एक दिन बीतने के साथ,
सोमवार,
रुका नहीं,
वह पल भर भी,
चलता रहा चाल वही,
जो उसने निर्धारित कर रखी,
अपने लिए चलने की,
पहुंच गया फिर वह उसी मुकाम,
पुरा कर अपना काम,
एक और दिन के साथ,
मंगलवार के नाम,
और चलता ही जा रहा वह,
इसी तरह
बुध, वृहस्पति, शुक्र शनि और रविवार तक,
बेझिझक, बेरोकटोक,
करके एलान,
एक सप्ताह,
दे गया हूं,
मैं तुम्हें जीने के लिए,
कितना जीए,
इन सात दिनों में,अपने लिए,
और कितना किया है बखेड़ा,
औरों के जीवन में जीने के लिए खड़ा,
मैं तो चला,
अपनी राह,
इसी तरह लिए चलने की चाह,
मकसद है मेरा,
पाना है मुझे एक और पड़ाव,
जिसे माह कह कर रहे हो पुकार,
पहुंचना है मुझे, उसके द्वार,
जनवरी नाम से हैं इसको बुलाते,
ठंड से हैं हाड़ तक कंप कंपा जाते,
पौस व माघ का यह मिश्रित मास है,
मकर संक्रान्ति का इसमें वास है,
पाप पुण्य से मुक्ति का प्रसस्त इसमें मार्ग है,
गंगा जली में स्नान का विशेष स्थान है
इस माह का एक और विशिष्ट सम्मान है,
गणतंत्र भी तो हमें इसी माह में मिला है,
चलता जा रहा जिसका सिलसिला है,
बीतते ही इसके, फरवरी का आगमन हो जाता है,
बसंत का आगाज भी यह करा लेता है,
होली का उत्सव भी यह अपने में समेटे रहता है,
और कभी कभी तो वह इसे, अपने सहोदर मार्च को दे देता है,
मार्च में हमें ठंडक से मुक्ति मिल जाती है,
बच्चों की परिक्षा भी इसी माह में आती है,
अप्रैल तक ग्रीष्म ऋतु अपने यौवन पर रहती है,
बैसाखी पर्व की धूम बडी रहती है,
रवि की फसलों का उत्पादन यह हमें दे जाती है,
और जाते जाते मई माह के लिए राह बना जाती है,
मई जून तो दोनों खूब तपते हैं,
आंधी और तूफान से लिपटे रहते हैं,
जुलाई अगस्त में ऋतु वर्षा की रहती है,
फसल खरीब की तभी धरती पर बोने की रश्म चलती है,
सितंबर और अक्टूबर में त्यौहारों का उल्लास खूब रहता है,
दशहरा-दिवाली फसलों से भरा पुरा महकता है,
नवंबर दिसंबर ठंडक की दस्तक दे जाते हैं,
इस तरह से हम अपना जीवन चक्र चलाते हैं,
यह क्षण,यह पल कब बीत जाते हैं,
साल दर साल हम यही सोचते रह जाते हैं,
जन्म से प्रारंभ हुई हमारी यात्रा,कब विश्राम दे जाती हैं,
कब हम बच्चे, से युवा हुए,कब युवा से प्रोढावस्था में आए,
कब हम बुढ़े होकर पलायन की राह तकते रहते हैं,
समय ने बहुत समय दिया, संकेत किया,हम ही न समझ पाए! समय-समय के अनुसार बीता जाए,
बीता हुआ पल लौट कर फिर ना आए!!

Language: Hindi
3 Likes · 7 Comments · 252 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
सरस्वती वंदना-2
सरस्वती वंदना-2
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
जग में उदाहरण
जग में उदाहरण
Dr fauzia Naseem shad
Typing mistake
Typing mistake
Otteri Selvakumar
वर्षों जहां में रहकर
वर्षों जहां में रहकर
पूर्वार्थ
चलना, लड़खड़ाना, गिरना, सम्हलना सब सफर के आयाम है।
चलना, लड़खड़ाना, गिरना, सम्हलना सब सफर के आयाम है।
Sanjay ' शून्य'
हे राम तुम्हीं कण कण में हो।
हे राम तुम्हीं कण कण में हो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
.......... मैं चुप हूं......
.......... मैं चुप हूं......
Naushaba Suriya
प्रकृति के आगे विज्ञान फेल
प्रकृति के आगे विज्ञान फेल
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
गोरे तन पर गर्व न करियो (भजन)
गोरे तन पर गर्व न करियो (भजन)
Khaimsingh Saini
अगहन कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के
अगहन कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के
Shashi kala vyas
|| तेवरी ||
|| तेवरी ||
कवि रमेशराज
पंख पतंगे के मिले,
पंख पतंगे के मिले,
sushil sarna
पारो
पारो
Acharya Rama Nand Mandal
मौत से यारो किसकी यारी है
मौत से यारो किसकी यारी है
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
खुद के करीब
खुद के करीब
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
भूले से हमने उनसे
भूले से हमने उनसे
Sunil Suman
गुड़िया
गुड़िया
Dr. Pradeep Kumar Sharma
संवेदना (वृद्धावस्था)
संवेदना (वृद्धावस्था)
नवीन जोशी 'नवल'
*हे अष्टभुजधारी तुम्हें, मॉं बार-बार प्रणाम है (मुक्तक)*
*हे अष्टभुजधारी तुम्हें, मॉं बार-बार प्रणाम है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
हम कितने चैतन्य
हम कितने चैतन्य
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मौसम नहीं बदलते हैं मन बदलना पड़ता है
मौसम नहीं बदलते हैं मन बदलना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
🥀 #गुरु_चरणों_की_धूल 🥀
🥀 #गुरु_चरणों_की_धूल 🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
उस रावण को मारो ना
उस रावण को मारो ना
VINOD CHAUHAN
23/104.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/104.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मायापुर यात्रा की झलक
मायापुर यात्रा की झलक
Pooja Singh
Gamo ko chhipaye baithe hai,
Gamo ko chhipaye baithe hai,
Sakshi Tripathi
ना धर्म पर ना जात पर,
ना धर्म पर ना जात पर,
Gouri tiwari
सोनपुर के पनिया में का अईसन बाऽ हो - का
सोनपुर के पनिया में का अईसन बाऽ हो - का
जय लगन कुमार हैप्पी
घणो ललचावे मन थारो,मारी तितरड़ी(हाड़ौती भाषा)/राजस्थानी)
घणो ललचावे मन थारो,मारी तितरड़ी(हाड़ौती भाषा)/राजस्थानी)
gurudeenverma198
जियो तो ऐसे जियो
जियो तो ऐसे जियो
Shekhar Chandra Mitra
Loading...