हर पल एक नया अहसास !अलविदा बीस इक्कीस का आगाज !!!
बीत रहा जो पल, बनने वाला है कल
कल जिसे हमने जी लिया वह पल,
और आने वाला है जो पल
वह भी आज से शुरू होकर बन जाएगा कल,
हर पल बीतने के साथ खो रहा है अपनी पहचान,
और जगा रहा है उम्मीदों का एक नया जहान,
जीने की लालसा, जीने की उमंग,
जीने का तरीका, जीने का ढंग,
जीने का संघर्ष, जीने का जुझारुपन,
आसानियों से भरपूर हो या कठिनाइयों से संपन्
जीने का अभियान और जीने की अभिलाषा,
कभी उल्लास की ताजगी, कभी कुंठा भरी निराशा,
कभी हतासा का माहौल, कभी मीठाश का आभास ,
हर पल एक नया अहसास !
पल जो बीतते बीतते बन गया कल !!
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पल बीता,
पल पल,
निश्छल,
अविरल,
अविकल,
हर क्षण,
हर घड़ी,
मिनट दर मिनट,
घण्टों में गया बदल,
और बढ़ता रहा,
अविचल,
सुबह से दोपहर,
दोपहर से सांझ तक,
नहीं किया विश्राम,
पहुंच गया रात के प्रहर तक,
अविराम,
और दे गया एक नाम,
एक दिन बीतने के साथ,
सोमवार,
रुका नहीं,
वह पल भर भी,
चलता रहा चाल वही,
जो उसने निर्धारित कर रखी,
अपने लिए चलने की,
पहुंच गया फिर वह उसी मुकाम,
पुरा कर अपना काम,
एक और दिन के साथ,
मंगलवार के नाम,
और चलता ही जा रहा वह,
इसी तरह
बुध, वृहस्पति, शुक्र शनि और रविवार तक,
बेझिझक, बेरोकटोक,
करके एलान,
एक सप्ताह,
दे गया हूं,
मैं तुम्हें जीने के लिए,
कितना जीए,
इन सात दिनों में,अपने लिए,
और कितना किया है बखेड़ा,
औरों के जीवन में जीने के लिए खड़ा,
मैं तो चला,
अपनी राह,
इसी तरह लिए चलने की चाह,
मकसद है मेरा,
पाना है मुझे एक और पड़ाव,
जिसे माह कह कर रहे हो पुकार,
पहुंचना है मुझे, उसके द्वार,
जनवरी नाम से हैं इसको बुलाते,
ठंड से हैं हाड़ तक कंप कंपा जाते,
पौस व माघ का यह मिश्रित मास है,
मकर संक्रान्ति का इसमें वास है,
पाप पुण्य से मुक्ति का प्रसस्त इसमें मार्ग है,
गंगा जली में स्नान का विशेष स्थान है
इस माह का एक और विशिष्ट सम्मान है,
गणतंत्र भी तो हमें इसी माह में मिला है,
चलता जा रहा जिसका सिलसिला है,
बीतते ही इसके, फरवरी का आगमन हो जाता है,
बसंत का आगाज भी यह करा लेता है,
होली का उत्सव भी यह अपने में समेटे रहता है,
और कभी कभी तो वह इसे, अपने सहोदर मार्च को दे देता है,
मार्च में हमें ठंडक से मुक्ति मिल जाती है,
बच्चों की परिक्षा भी इसी माह में आती है,
अप्रैल तक ग्रीष्म ऋतु अपने यौवन पर रहती है,
बैसाखी पर्व की धूम बडी रहती है,
रवि की फसलों का उत्पादन यह हमें दे जाती है,
और जाते जाते मई माह के लिए राह बना जाती है,
मई जून तो दोनों खूब तपते हैं,
आंधी और तूफान से लिपटे रहते हैं,
जुलाई अगस्त में ऋतु वर्षा की रहती है,
फसल खरीब की तभी धरती पर बोने की रश्म चलती है,
सितंबर और अक्टूबर में त्यौहारों का उल्लास खूब रहता है,
दशहरा-दिवाली फसलों से भरा पुरा महकता है,
नवंबर दिसंबर ठंडक की दस्तक दे जाते हैं,
इस तरह से हम अपना जीवन चक्र चलाते हैं,
यह क्षण,यह पल कब बीत जाते हैं,
साल दर साल हम यही सोचते रह जाते हैं,
जन्म से प्रारंभ हुई हमारी यात्रा,कब विश्राम दे जाती हैं,
कब हम बच्चे, से युवा हुए,कब युवा से प्रोढावस्था में आए,
कब हम बुढ़े होकर पलायन की राह तकते रहते हैं,
समय ने बहुत समय दिया, संकेत किया,हम ही न समझ पाए! समय-समय के अनुसार बीता जाए,
बीता हुआ पल लौट कर फिर ना आए!!