हर दिल गया जब इस क़दर गुनहगार हो
हर दिल गया जब इस क़दर गुनहगार हो।
तो इंसानियत क्यों न इतनी शर्मशार हो?
देते हैं लोग हर पल दुहाई एक दूसरे को।
तो क्यों कर ज़िन्दगी हमेशा साज़गार हो?
करते हर बात पे फितना ओ फसाद अक्सर।
तो क्यों लोगों के बीच न खड़ी दीवार हो?
एक दूसरे के लहू के जो ठहरे प्यासे ये लोग।
तो क्यों न बदनाम हमारा ये प्यारा संसार हो?
दरिया जब बेचैन हो उठा समुद्री तूफ़ान में।
तो क्यों न किश्तियाँ साहिल के दरकिनार हो?
बँट गये लोग किश्तों में हर मज़हब के नाम पे।
जब क्यों न जाहिल धर्म के पुरे ठीकेदार हो?
खुदा के आँखों से भी देख ये छलक उठे आँसूँ।
अब क्यों उसके दिल में बन्दों के लिए प्यार हो?