हर दिन बदलता सा दिखता है
हर दिन बदलता सा दिखता है, अपनों की पहचान नहीं ,बड़ों की लिहाज नहीं, हर दिन बदलता सा दिखता है।
अब वह पहले सा व्यापार ना रहा, ना रहा पहले सा व्यवहार लोगों का ,क्योंकि हर दिन बदलता सा दिखता।
ना पक्षी ज्यादा दिखते हैं, ना दिखते वह कीट पतंगे ,क्योंकि हर दिन बदलता सा दिखता है।
ना वह गांव पहले से दिखते हैं ,हर गांव शहर सा दिखता है ,अब हर दिन बदलता सा दिखता है।
लगती थी हर घर में पहले चहल पहल अब सन्नाटे से हर घर में रहते हैं, क्योंकि हर दिन बदलता सा दिखता है ।
रहते थे पहले इकट्ठे हर घर में 30या36 भी, अब बन गए हैं सब के अलग-अलग महल, रहते हैं बस दो-तीन ,क्योंकि हर दिन अब बदलता सा दिखता है।
✍️वन्दना ठाकुर ✍️