हर तरफ
हर तरफ हँसने वाले खड़े हैं।
भीड़ में ठसने वाले खड़े हैं ।।
आग को न बुझा पाएंगे ये ।
धुंए में फँसने वाले खड़े हैं ।।
छोड़कर प्यारा सा गांव अपना ।
शहर में बसने वाले खड़े हैं ।।
जिन्हें आजाद रहने का हक़ है ।
उनको ही कसने वाले खड़े हैं ।।
सीधे रस्ते से जाने में डर है ।
कीच में धँसने वाले खड़े हैं ।।
आस्तीनों में देखो तो कितने ।
साँप जो डसने वाले खड़े हैं ।।