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6 Oct 2020 · 1 min read

हर तरफ

हर तरफ हँसने वाले खड़े हैं।
भीड़ में ठसने वाले खड़े हैं ।।

आग को न बुझा पाएंगे ये ।
धुंए में फँसने वाले खड़े हैं ।।

छोड़कर प्यारा सा गांव अपना ।
शहर में बसने वाले खड़े हैं ।।

जिन्हें आजाद रहने का हक़ है ।
उनको ही कसने वाले खड़े हैं ।।

सीधे रस्ते से जाने में डर है ।
कीच में धँसने वाले खड़े हैं ।।

आस्तीनों में देखो तो कितने ।
साँप जो डसने वाले खड़े हैं ।।

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