हर ज़ख्म हमने पाया गुलाब के जैसा,
हर ज़ख्म हमने पाया गुलाब के जैसा,
हर बार तूफ़ान आया है सैलाब के जैसा।
उड़ा ले गयी नींदे हमारी इलाहाबाद की परियां,
हमसफर अब कहाँ मिलता है मुमताज के जैसा।।
हर ज़ख्म हमने पाया गुलाब के जैसा,
हर बार तूफ़ान आया है सैलाब के जैसा।
उड़ा ले गयी नींदे हमारी इलाहाबाद की परियां,
हमसफर अब कहाँ मिलता है मुमताज के जैसा।।