हर इश्क़ जिस्मानी होता है…
हर इश्क़ जिस्मानी होता है,
बदन के झरोखों से शुरू होकर
जिश्म के पसीने पर खत्म होता है,
हर इश्क़ जिस्मानी होता है…!
पक जाए तो रसदार इमरती है,
बरना क़यामत के दिनों तक
बातों में अमर प्रेम होता है,
हर इश्क़ जिस्मानी होता है..!
तुम बनो कान्हा या बनो राधा,
बनकर फिरते रहो मजनू या फिर लैला
गली-सड़को के किनारों से शुरू होकर,
ये फ़ितूर बिस्तर पर ही खत्म होता है..!
हर इश्क़ जिस्मानी होता है..!
ये बातों का तरीका है और कहने का तर्जुमा है
मर्द हँसकर खुलकर बताता है,
होठों से दबाकर औरत की आखों से झलकता है
हर इश्क़ जिस्मानी होता है..!
नही मिलता पल भर के लिए आशिक,
दिल तेजाब सा बैचेन होकर उफनता है
मिलने पर दिल से कहीं ज्यादा,
ज़िस्म का हर अंग फड़कता है,
हर इश्क़ जिस्मानी होता है …!
इश्क़ होता नही पहला, शुरुआत में अगर पहला हो
बनकर ये पहला फिर कभी आखिरी नही होता है
रेलगाड़ी का डब्बा बनकर ये, हर इंजन के पीछे होता है
हर इश्क़ जिस्मानी होता है…!
सच्चा आशिक कहूँ किसको,
हर कोई आखों में डूबने की चाह रखता है
कोई चाहता है खेलू जुल्फों से,
किसी के सात जन्मों का मिलन,
बिस्तर पर ही खत्म होता है,
ये जिस्मों की सौदाग़री है प्यारे,
जो इश्क़ कहकर ही छुपता है..
हर इश्क़ जिस्मानी होता है….
इश्क़ रूहानी शब्द,
अफ़ीम जैसा होता है,
नशे में डालकर आशिक को
ज़िस्म का सौदा करता है,
ना कभी कोई साथ मरता है
ना कभी कोई ज़िस्म को बगैर पाये रहता है
हर इश्क़ जिस्मानी होता है..!!
हर किसी की आखों में जवां इश्क़ दिखता है,
किसी की बोली में बेबफाई का दर्द महसूस होता है
भागने का मौका मिला जिसको पहले,
तड़फते आशिक़ की तन्हा रातों में,
हमेशा दूसरा बेबफा ही होता है..
हर इश्क़ जिस्मानी होता है..!!
( Written By..प्रशान्त सोलंकी..)