हर इंसान का एक सहारा।
हर इंसान का एक सहारा बस उसका ही रब होता है |
उम्मीदे दुआ पाने को अपनी बस उसका ही दर होता है ||1||
दिन तो कट जाता है सबका शहर की इन गलियों में |
पर रात ठहरने को तो बस अच्छा अपना ही घर होता है ||2||
गुरबत पर हंसना किसी के होती अच्छी बात नहीं |
हर किस्मत बदलने को काफी बस लम्हा ही भर होता है ||3||
ये आलीशान बंगले कोठी कुछ ना तेरा मुकाम होगा |
मरने पर सबका दो गज जमीन का टुकड़ा ही घर होता है ||4||
मत इतराओ शानों शौकत पर क्या तुमको पता नहीं |
डूबने को कश्ती को काफी सुराख का कतरा ही भर होता है ||5||
देखा जो बुजुर्गों को दूर शहर के उस यतीम खानें में |
तो समझ में आया अपनों का हर रिश्ता ही बेमतलब होता है ||6||
ताज मोहम्मद
लखनऊ