#ग़ज़ल-06
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हर अहल – ए – वतन बेदार जाए
घर रह न बेवज़ह बाज़ार जाए/1
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वो ख़्वाब – ए – ग़फ़्लत अज़ीज़ ना हो
ख़ुद मरे पर और को मार जाए/2
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इत्तफ़ाक़ अब तो हमें चाहिए है
अल्ग़रज़ खाली अभी ना वार जाए/3
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ग़ाफ़िल न बन जोश – ए – निहाँ चख ले
और चख ज़ख़्मे – दिल सुधार जाए/4
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ये घड़ी ख़्वाह शाइस्ता रहें हम
मुल्के – वफ़ा जीत दरबार जाए/5
?शब्दार्थ-
अहल-ए-वतन-देशवासी , बेदार-जाग , ख़्वाब-ए-ग़फ़्लत-लापरवाही की नींद,अज़ीज़-प्रिय,इत्तफ़ाक़-एकता, अल्ग़रज़-संक्षिप्त रूप में,ग़ाफ़िल-असावधान, जोश-ए-निहाँ-छिपा हुआ जोश, ख़्वाह-चाहे,शाइस्ता-सभ्य
–आर.एस.प्रीतम
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