हर्षवर्धन महान
थे ‘बैस’ राजवंश के, हर्षवर्धन महान
तीर-ओ-कलम से बढ़ी, राजपूत की शान
वर्द्धन ‘पुष्यभूति’ रहा, राजवंश का नाम
कुछ हिन्दू, कुछ बौद्ध थे, किये प्रजा हित काम
‘पाँच सौवीं’ सदी रही, ‘नब्बे’ था तब वर्ष
‘यशोमती’ की गोद में, खेल रहे थे हर्ष
राज्य अभिषेक जब हुआ, ‘छह सौ छह’ था वर्ष
‘छह सौ सैंतालीस’ तक, राज किये थे हर्ष
जननी नाम ‘यशोमती’, जनक ‘प्रभाकर’ वीर
भ्रात ‘राजवर्धन’ कड़े, बहन ‘राज्यश्री’ धीर
पिता प्रभाकर की वीरता, पराजित हुए हूण
लक्ष्य वही लेकर चले, पुत्र हर्ष सम्पूर्ण
थानेश्वर–कन्नौज को, राजहित किया एक
चले युद्ध अभियान पर, करते विलय अनेक
‘नाग’-‘रत्न’-‘प्रियदर्शिका’, संस्कृत नाटक तीन
साहित्य रचा हर्ष ने, उत्तम लगे नवीन
अद्भुत ‘नागानन्द’ है, ‘रत्नावली’ विशेष
क्या कहने प्रियदर्शिका, हर्ष नाटिका शेष
वीणा वादन में रहे, निपूर्ण ‘हर्ष’ विशेष
मन्त्रमुग्ध हो शत्रु भी, भूले सब विद्वेष
•••
______________________
*हर्षवर्धन (जन्म: 590 ई. तथा मृत्यु: 647 ई.) प्राचीन भारत में अन्तिम यशस्वी हिन्दू राजा था जिसने उत्तरी भारत के एक बड़े भूभाग पर 606 ई. से 647 ई. तक शासन किया। महान हर्षवर्धन राजे जी, वर्धन राजवंश के शासक प्रभाकरवर्धन का पुत्र था। जिसके पिता अल्कोन हूणों को पराजित किया था। जब हर्ष का शासन अपने चरमोत्कर्ष पर था तब उत्तरी और उत्तरी-पश्चिमी भारत का अधिकांश भाग उसके राज्य के अन्तर्गत आता था। उसका राज्य पूरब में कामरूप तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। कन्नौज उसकी राजधानी थी जो आजकल उत्तर प्रदेश में है। उसने 647 ई. तक शासन किया। हर्षवर्धन बैस क्षत्रिय वंश के थे।
**हर्ष साहित्य और कला का पोषक था। कादंबरीकार बाणभट्ट उसका अनन्य मित्र था। हर्ष स्वयं वीणा बजाता था। हर्ष की लिखी तीन नाटिकाएँ ‘नागानन्द’, ‘रत्नावली’ और ‘प्रियदर्शिका’ संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं।