हरी भरी हो गई धरा (गीतिका)
हरी भरी हो गई धरा (गीतिका
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हरी भरी हो गई धरा है, पत्ता पत्ता मुसकाता।
छाई हैं घनघोर घटाएं, बादल पानी बरसाता।
ताल सरोवर हुए लबालब, भर आए नदियां नाले।
कलकल छलछल गीत सुहाना, लहरों सँग गूंजा जाता।
नभ पर काले काले बादल, सभी दिशाओं में फैले।
पर फैलाए मस्त मयूरा, अति सुन्दर नृत्य दिखाता।
घन करते हैं जब भी गर्जन, बिजली कौंध कौंध उठती।
रौशन होती सभी दिशाएं, दृश्य बहुत मन को भाता।
झिंगुर और पपीहे देखो, मिलकर सब शोर मचाते।
मेंढक भी लेकर ऊंचा स्वर, पोखर में है टर्राता।
कुदरत के सुन्दर दृश्यों का, होता वर्षा का मौसम।
अपनी सौंधी सी सुगंध से, छोर धरा के महकाता।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १९/११/२०२१