हरियाली और जीवन
हरियाली और जीवन
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सूर्यदेव क्रोधित हुआ,मारे करके धूप।
राही प्यासा क्या करे,सूखे नद नलकूप।।
रोक प्रदूषण आज ही,स्वच्छ करो मैदान।
हरीभरी भू कीजिए,वृक्ष जीवन की तान।।
मानव रूठे मेघ हैं,करते यही पुकार।
पेड़ बुलाते प्रेम से,करो न इनपे वार।।
गर्मी-पारा तीव्र हो,जलती धरा प्रचंड।
लू से मरते लोग हैं,प्रकृति-ह्रास का दंड।।
जल ही जीवन यहाँ,करो नहीं तुम व्यर्थ।
आवश्यकता पूर्ति हो,लेकर रहो समर्थ।।
वृक्ष छाया फल फूल दें,लकड़ी देते अंत।
जीवन साँसे भेंट कर,सेवा करें अनंत।।
पेड़ लगाकर सींचिए,फूले-फले विहार।
बकरी आई खा गई,बस रह गया प्रचार।।
देख धरा सौन्दर्य को,मन पुलकित हो मित्र।
दशों-दिशा वृक्ष झूमते,करदें नवल विचित्र।।
नव पीढ़ी का आगमन,हो सुंदर परिवेश।
विशेष है उपहार ये,धन न रहे अखिलेश।।
प्रीतम शीतल छाँव-वृक्ष,बैठें उतरे हार।
पक्षी नीड़ निर्माण कर,फल खाएँ दिन चार।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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