हरिगीतिका
आधार छंद- “हरिगीतिका” (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा (28 मात्रा)
समान्त- “आर”, पदान्त- “हो”।
अंकावली-
2212, 2212, 2212, 2212.
सुर ताल लय माँ शारदे,शुचि काव्य नद की धार हो।
उर भाव लिखुँ सतसिंधु सम नव छन्द का विस्तार हो।।
ऐरी सखी कुछ तो सुझा,काटे कटत रैना नहीं,
ऐसा भला मैं क्या करूँ मनमोहना मनुहार हो।
बन्सी बनूँ मन कामना शुभ मोर पाखी भाल पे,
बनूँ साँवरे की साँवरी मंजुल ललित श्रृंगार हो।
जोगन हिया हुलसा पिया, जैसे लगा मधुमास रे,
पावस झरे घन झूमते,कर प्रीति की बौछार हो।
मीरा बनी कान्हा भजूँ चाहूँ दरस प्रिय श्याम के,
कर दो कृपा कान्हा अगर नीलम हृदय उपकार हो।
नीलम शर्मा ✍️