हरबाह।
हरबाह
-आचार्य रामानंद मंडल
भजन अप्पन सिमरा गांव के ठोस गिरहस शेखर प्रताप के हरबाह रहे।हर साल सिरि पचैय के अप्पन मालिक के हर खड़ा क के साल भर के लेल बंधुआ हरबाह बन जाय।
बोइन में पांच सेर अनाज मिलैय।अनाज में धान त कहियो गहूंम,त कहियो मरुआ,त कहियो मकैइ,त कहियो अलुआ मिले।वोकर घरोवाली मजदूरिन के काम करे। खास के धनरोपनी,कमौटी आ कटौनी। और समय में अपन घर के काम करे।
भजन गिरहस के हरबाही करैत आबि अधबैस भे गेल।परंच दमा के कारण बुढ जका भे गेल।भजन के एगो बेटा हैय मनोहर।जे आबि इक्कीस साल के हैय।मनोहर अपना गांव के स्कूल से आठवां पास हैय।आबि वो चाहै हैय कि दिल्ली जा के कमाई।गांव के वोकर उमर के मोहन,पदारथ आ बदरी कमाय के लेल दिल्ली जा रहल हैय। सभ सिरी पंचैय के दिल्ली जाय के प्लान बनैले हैय।
सिरी पंचैय के एक दिन पहिले सांझ मेंं भजन गिरहस शेखर प्रताप के इहां गेल आ कहलक-मालिक।मनोहर कालि अपना संगी सभ के संगे दिल्ली कमाय जाइत चाहैय हैय। मनोहर के भाड़ा-खरचा के लेल हमरा एक हजार रूपया दूं।जैयसे मनोहर दिल्ली जाइ सकै।हम इ रुपया जल्दीये सधा देव।हम त अंहा के हरबाही करबे करै छी।
शेखर प्रताप बिगड़ैत कहलन-तोरा मनोहर के दिल्ली कमाय लेल भाड़ा खरचा के लेल रुपया चाही।
आ हमर इंहा हरबाही के करतै।तू आबि दमा के कारण हरबाही में न सकै छे।आबि तोहर बेटा मनोहरा हरबाही करतौउ।कालि सिरी पचैय हैय।कालि तोरा बदले मनोहरे हर उठैतेउ।मनोहरा दिल्ली न जतौउ।करजा लेले से आइ तक न सधलौउ हैय।
भजन गिरगिराइत बोलल- मालिक। मनोहर के कमाय जाय दिल्ली जाय दिऔ।सभ करजा हम सधा देव।तेज प्रताप बोलल-तोहर बाप करजा लेके हरबाही करैत न सधा पैलक।तू अपना बाप के आ अपन करजा न सधा पैलै।आ तू आब बेटा के लैल करजा लेबे। अपने त अब काज में सकै छे न।आब तोरा बेटा के कालि हर खड़ा करे के परतौउ।
भजन आ तेज प्रताप में बात होइत मनोहर आ वोकर संगी सभ सुनलक।जे तेज प्रताप के इहां देखे अपन संगी सभ के संगे अपन बाबू के बुलावे आयल रहे।वोकरा सभ के दिल्ली जाय के लेल तैयारी करे के रहे।
मनोहर के एगो संगी बदरी कुछ ज्यादा होशगर आ निडर लैइका रहे। घर से थोडा मजबूत भी रहे।वोकर बाबू अर्द्ध सरकारी हाई स्कूल के चपरासी रहे।
बदरी कहलक-चला घरे भजन काका। मनोहर के दिल्ली जाय के भाड़ा खरचा हम देबैइ।इ तेज प्रताप बाबू कैला मनोहर के दिल्ली जाय देतौ।हिनका त बंधुआ मजदूर चाही।जे साल भर पांच सेर अनाज पर हरबाही करैत रहे।इ मिथिला में जमींदार के परथा कि सिरी पंचैय के जे मजदूर हर खड़ा करतै ,उ हरबाह बन के साल भर मालिक खेत जोत तैइ।उ बीच में हरबाही न छोड़ सकै छैय।इ एगो परंपरा बना देले हैय।आबि इ बंधुआ मजदूर बनाबे के प्रथा बन गेल हैय।इ दास प्रथा हैय।
अइ दास प्रथा के चलते आइ तक कोनो मजदूर के करजा न सध ले हैय।आबि अइ चंगुल में मनोहर न फंसतैय। मनोहर हरबाह न बनतैय। मनोहर भी कहलक हम हरबाह न बनबैय।भजन आ मनोहर सभ संगी के संगे अपना घरे चल आयल।तेज प्रताप मूंह तकैत रह गेल।
सिरी पंचैय के मनोहर सभ संगी के साथ दिल्ली चल गेल।
स्वरचित © सर्वाधिकार रचनाकाराधीन
रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।