हरपल दिल में चाह यही है, लौटे बचपन फिर इक बार
याद आ रही माँ की लोरी, और मुझे वो माँ का प्यार
बहुत सुखद थे बचपन के दिन, माँ का आँचल ही संसार।
दूध रोटियाँ लगती प्यारी, ज्यों हो स्वाद भरे पकवान
जो चाहा तब मिल जाता था, माँ लगती थी इक भगवान।
नहीं थे सारे खेल खिलौने, फिर भी ख़ुश थे सारे यार
गुड्डे-गुड़िया, गिल्ली-डंडा, खुशियाँ मिलती अपरम्पार।
किसी बात की नहीं थी चिंता, नहीं हृदय में बड़े सवाल
छोटी छोटी खुशियाँ थीं पर, जीवन लगता था खुशहाल।
ना जाने क्यों बड़े हुए हम, कहाँ खो गए दिन वो चार
हरपल दिल में चाह यही है, लौटे बचपन फिर इक बार।
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’ (भोपाल)