गीत- हरपल चाहूँ तुझे निहारूँ…
हरपल चाहूँ तुझे निहारूँ, कितनी प्यारी सूरत है।
हँसी तुम्हारी कमल सरीखी, मौन चाँद की मूरत है।।
भोली-भोली बातें तेरी, मन मधुबन की शाला है।
नशा तुम्हारी आँखों में वो, सज़दा करती हाला है।
होंठ गुलाबी नैन ज़वाबी, दिल में खिले मुहब्बत है।
हँसी तुम्हारी कमल सरीखी, मौन चाँद की मूरत है।।
नीयत सीरत पावन गंगा, जीवन जैसे गीता है।
प्रेम डगर पर चलकर तूने, मेरे दिल को जीता है।
रुत आए जाए कोई भी, फूलों जैसी फ़ितरत है।
हँसी तुम्हारी कमल सरीखी, मौन चाँद की मूरत है।।
ख़्वाब तुम्हारे मधुर मनोहर, रीत गीत की सरग़म है।
बरसे नित प्रेम जवाबों में, दिल लहरों का संगम है।
शब्द हौंसला भरें तुम्हारे, हाँ! तू एक नेहमत है।
हँसी तुम्हारी कमल सरीखी, मौन चाँद की मूरत है।।
आर.एस. ‘प्रीतम’