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30 May 2024 · 1 min read

” हय गए बचुआ फेल “-हास्य रचना

दिन रिजल्ट कौ आय गय,
कैसे पावौं झेल।
परसेंटेज की का कहौं,
हय गए बचुआ फेल ।।

दादी मुँह ऐँठे फिरैं,
अम्मा कसैँ नकेल।
ददुआ गारी दै रहे,
भउजी रहीँ धकेल।।

बाबूजी से डर लगति,
मौनी बनी अझेल।
बेशरमन जस बइठि हम,
डारि कान मँह तेल।।

पिन्नी-पूजा धरि रही,
लगति ह्वै गई जेल।
पछताए अब होत का,
गई छूटि जब रेल।।

बहिनी ” आशा ” भरि रही,
मन धरि लेहु सकेल,
पढ़ियौ अबकी जतन ते,
तनिक न होइ झमेल।।

भरी दुपहरी मा सुनौ,
मिलिहै नाहिं गुलेल।
साँझि बेरि घूमत रहे,
खूबहिँ अतर उँडेल।।

बाबूजी निरधे रहे,
निपट गरीबी झेल।
पेट काटि कै फीस भरि,
जुरतो कहाँ फुलेल।।

छिन भर माँ कुट्टी, अगर,
अगले छिन है खेल।
धन्य जगत मा आज हूँ,
बहिनी-भय्या मेल..!

##———-##———-##

Language: Hindi
5 Likes · 3 Comments · 125 Views
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