हम
पुरी जिन्दगी इन्सान की यू ही निकल जाती है लेकिन समझ कुछ नही आता है
ओर जब समझ आता है तब दूसरो को
समझाने के लिये अपने पास कुछ नही रहता है । क्योकि तब हमे सब सही नजर आता है या फिर उसके विपरीत नजर आता है
अपने को श्रेष्ठ दिखाने के लिये कितनी महनत करनी पडती है | लेकिन जो श्रेष्ठ होता है वो खुद मैं भी श्रेष्ठ होता है| चाहे वो दूसरों की नजरों मे श्रेष्ठ हो या ना हो।
वो श्रेष्ठ होता है।