” हम ज़िन्दगी , ठेल रहे हैं !!
पहले पेट
काम फिर दूजा !
शिक्षा दीक्षा
वक़्त अबूझा !
मात पिता ने –
राह थमा दी !
जैसे खेला –
खेल रहे हैं !!
शीत गरम
करे असर ना !
बारिश में
तरबतर रहे हाँ !
मौसम सारे –
कसर ना छोड़े !
कोल्हू के ज्यों –
बैल रहे हैं !!
उत्सव मेले
हैं लगे झमेले !
श्रम करते
रहते अलबेले !
कठिनाई से –
अर्जन होता !
जो हो मुश्किल –
झेल रहे हैं !!
कोरे भाषण
हम भी सुनते !
वोट दिये
फिर भी सिर धुनते !
बड़े लुभावन –
हैं होते वादे !
कुछ पाने में –
फेल रहे हैं !!