हम हिन्दू हों,या कुछ और!
हम हिन्दू हैं, या कुछ और,
यह कहे जाने पर,
करते हैं गर्व की अनुभूति,
हमें भारतीय कहलाने में,
महसूस होती है राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति!
हम गांव-देहात से हैं,
इसे जतलाने में रखते हैं संकोची प्रवृत्ति,
और यदि हम शहरी हुए,
तो यह दर्शाने में झलकती है गर्व की परिणिति!
दरअसल हम क्या हैं,
यह उस परिवेश से तय करते हैं,
गांव-शहर,जाति धर्म, और संप्रदाय पर,
किया गया है,
ठीक-ठाक निवेश,
हम वही बनकर दिखाते हैं,
जो जहां का, जैसे होता है परिवेश!
हम वही तो बन कर उभरे हैं,
जो हममें कूट कूट कर भरा गया हो,
जिसे हमने उस दौर में सीखा है,
और उसे ही हम प्रकट करते हैं,
तब के माहौल में,
जिस दिन के लिए इसे धारण किया था हमने!
यदि हम एक ही धर्म में पैदा हुए हैं,
तब भी, अपने अराध्य देव में,
आस्था रखने का प्रकटिकरण,
विविधताओं से है परिपूर्ण,
भक्त कि भक्ति की कोई सीमा नहीं,
कोई भजते हैं दिन रात,
चारों प्रहर,
कोई भजते हैं सुबह-शाम,
कोई नहीं भी जपते उसका नाम,
लेकिन करते हैं पुरा सम्मान,
और पाते हैं उसे अपने ही अंतर मन में,
कोई हैं जो नकार देते हैं,
इस सब को,
लेकिन नहीं करते किसी की भावनाओं को आहत,
और कुछ हैं ऐसे भी जो,
मर मिटने को रहते हैं तैयार,
बिना किसी रंजिश के भी कर देते हैं वार,
यह हम सब का अपना-अपना है आचार व्यवहार!
ऐसे भी हैं जो कट्टरता की हद तक जा पहुंचे हैं,
ऐसे भी हैं जो सरल सहज होकर जीते हैं,
ऐसे भी हैं जो उदार रुख अपनाते हैं,
तो कुछ ऐसे भी हैं जो निरपेक्ष भाव दर्शाते हैं,
कुछ ऐसे भी हैं जो कोई भी रुचि नहीं दिखाते ,
बस अपने को अपने में ही सीमित हैं पाते ,
हम सबके स्वभाव में एक रुपता का अभाव है,
और शायद इसी लिए सब कुछ बिखरा हुआ नजर आता है,
लेकिन यह हमारी कमजोरी नहीं हो सकती,
तभी तो हर विकट परिस्थिति में भी एकजुटता रहती है,
बस यही भाव बना रहे,
हम चाहे कोई भी हों,
विविधता में भी एकता का सदा आभास होता रहे।