हम हँसते-हँसते रो बैठे
हम हँसते-हँसते रो बैठे।।टेक।।
इन्द्र-धनुष सी छवि को देखा,
भरकर इन आँखों मेँ पानी,
मौन-निमंत्रण को पा कर के,
कर बैठा थोड़ी मन-मानी,
तुमको लख मैँ दिल खो बैठा,
जाने तुम किसके हो बैठे।
हम हँसते-हँसते रो बैठे।।1।।
दुःख जो मेरा समझ न पाए,
कैसे उसको व्यथा सुनाऊँ,
जीवन की दुर्गम-क्षण वाली,
कैसे उसको कथा सुनाऊँ,
निर्मोही की चाहत मेँ हम,
लाज-हया सब कुछ धो बैठे।
हम हँसते-हँसते रो बैठे।।2।।
जीवन की नैया डगमग है,
फिर भी उसको ठेल रहा हूँ,
आज मौत से आँख मिचौली,
बीच भँवर मेँ खेल रहा हूँ,
तुम बिन पल-पल तड़प रहा मन,
हाय! सनम तुमको खो बैठे।
हम हँसते-हँसते रो बैठे।।3।।
मुझको ठुकरा कर मत समझो,
नया काम तुम कर डाले हो,
मैँ तुम से अनजान नहीँ हूँ,
तुम मेरे देखे-भाले हो,
मेरे मन-मंदिर मेँ आ तुम,
जाने क्यूँ पत्थर हो बैठे।
हम हँसते-हँसते रो बैठे।।4।।