हम सब तरस रहे हैं खुल करके इक हंसी को!
गज़ल
हम सब तरस रहे हैं खुल करके इक हंसी को!
किसकी नजर लगी है ना जाने इस खुशी को!
हम चाहते थे जिनको खुद से खुदा से ज्यादा,
खुद चुन लिया उन्होंने अब हम सफर किसी को!
बस उनकी् जिंदगी में हो हर तरफ उजाला,
कर डालेंगे अॅंधेरा दुनियाँ की् जिंदगी को!
सजदा सलाम करते जो रोज उस खुदा को,
समझे नहीं हैं वो भी बंदों की् बंदगी को!
अपने लिए तो उसने दुनियाँ के सुख खरीदे,
ना दूर कर सका वो गैरों की् मुफलिसी को!
बस चांद खोजता है हरदम चकोर देखो,
तुम क्या समझ सकोगे ‘प्रेमी’ की बेबसी को!
….. ✍ ‘प्रेमी’