हम सब इक सफर में हैं !
हम सब इक सफर में हैं,
ये सफर पूरा भी होगा।
जिंदगी कुछ पल की है,
रात है तो, सवेरा भी होगा।
बचपन में रहती मिठास,
जवानी की अलग आस।
बुढ़ापा अंतिम ठिकाना,
फिर होना यहां से रवाना।
सांसे जब तक चलती हैं,
भावनाएं भी खूब मचलती।
जो ये साथ छोड़ जाएंगी,
बंधन सारे तोड़ जाएंगी।
क्या रिश्ते, कैसे ये नाते,
सफर में सब आते जाते।
मिलने बिछड़ने की कहानी है
दरिया का बहता पानी है।
यहां तो सब कुछ नश्वर है,
मात्राओं से बना अक्षर है।
सब मिट्टी में मिल जाना है,
इक दिन लौटकर जाना है।
फिर क्यों इतनी मारा मारी है,
क्यों इतनी यहां तैयारी है।
क्यों लूट खसोट करते हैं,
जीने के लिए क्यों मरते हैं।
क्यों बैर और इतना द्वेष यहां,
क्यों नकली सबका भेष यहां।
कपड़े उजले, मन के काले हैं,
ऐसे यहां सब दिलवाले हैं।
छोड़ें हम, ये सब झूठी माया है,
किराए की अपनी ये काया है।
जीवन जैसे किसी अहर में है
हम सब इक सफर में है।