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14 Jul 2018 · 1 min read

हम सफर में रहे हमसफर के लिए।

हम सफर में रहे हमसफर के
लिए।
पास जितने बढ़े दूरियां बढ़ गईं,
एक मारीचिका सी सतत् अड़ गई,
चलते चलते उमर सीढ़ियाँ चढ़ गई,
आज तरसे नजर एक नजर के लिए
हम सफर में रहे हमसफर के लिए।
टूटता रूप को देख दर्पण रहा,
आधा दर्शन रहा आधा अर्पण रहा
मौन स्वीकृति में आधा समर्पण रहा
आज है एक कसक उस कसर के लिए
हम सफर में रहे हमसफर के लिए।
राह जितनी चली थी अधूरी चली,
ख्वाब जितने बुने थे अधूरे बुने
फूल जितने चुने थे अधूरे चुने
आधा सजदा दुआ में असर के लिए।
हम सफर में रहे हमसफर के लिए।

अनुराग दीक्षित

Language: Hindi
238 Views
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