हम रिश्तों में टूटे दरख़्त के पत्ते हो गए हैं।
घर की दहलीज के भी हिस्से हो गए हैं।
रिश्तों के सब ही धागे कच्चे निकल गए है।।1।।
मां बाप से मिले सब ही रिश्ते बंट गए है।
पुराने घर के अलग अलग नक्शे हो गए हैं।।2।।
दिलो की मुहब्बत जाने कहां खो गई है।
अजनबी सबसे ही दिलके रिश्ते हो गए हैं।।3।।
हर मौसम ही अब पतझड़ सा लगे है।
हम रिश्तों में टूटे दरख़्त के पत्ते हो गए हैं।।4।।
दीवार उठी हैं फासलें दरम्यां हो गए।
ऐसा लगे है सामां से हम सस्ते हो गए हैं।।5।।
झूठी बाते करके भी वो सच्चे हो गए।
जो थे गलत वो सारे ही अच्छे हो गए हैं।।6।।
दाखिला तो लिया है स्कूल में मैने भी।
पर हम बिन किताबों के बस्ते हो गए हैं।।7।।
यूं तो जानते पहचानते सब ही है हमें।
पर अब लगे पढ़े रिसालों के पन्ने हो गए हैं।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ