हम यूं ही इतराते थे
हम यूं ही इतराते थे
हम बिन कह रह जाते थे
वो नयनों से तीर चलाते थे।
घायल, चोटिल दिल हो जाता
वो मरहम तक ना लगात थे।
जुल्फों को लहराते थे हर पल
कई दिलों को आग लगाते थे।
हम धू-धू कर जलते रहे बस
वो पानी तक ना बरसाते थे।
हम भूखे-प्यासे वक्त बिताते
वो पिज्जा-बर्गर खाते थे।
हम कांटों की सेज पर सोते
वो मखमल रोज बिछाते थे।
हसरत दिल की दिल में रह गई
वो बस हमें देख मुस्काते थे।
हमदम बन गए और किसी के
‘विनोद’ हम यूं ही इतराते थे।