हम मेहमान है यहां
खुद को जो तू मेज़बान
समझ रहा है आज यहां
बहुत नादान लग रहा है
हर कोई मेहमान है यहां।।
आता है दुनिया में वो
अपना किरदार निभाता है
इंसान तो बस राही है
सफर पूरा करके चला जाता है।।
गलतफहमी होती है हमें
लगता है हम ही है यहां
कर रहा हूं मैं ही सबकुछ
चला रहा हूं मैं ही जहां।।
पलभर की है ये ज़िंदगी,इसीको
अपना ठिकाना समझता है
जाने क्यों हवा के झोंके को वो
अनजाने में समंदर समझता है।।
बना रहा महल ऐसे, जैसे
यही आखिरी पड़ाव है
जाना है कुछ पल में सबने
फिर भी कैसा लगाव है।।
लगी है होड़ समेटने की यहां
इतना सब ले जायेगा कहां
खाली हाथ ही तो जाना है
तू आखिर में जायेगा जहां।।
है ये जीवन तो एक पड़ाव
तेरे सफर की मंजिल नहीं
फिर क्यों सोचता रहता है
रहना है हमेशा तुमको यहीं।।
चलो इस गलतफहमी को
मन से आज हम मिटाते है
मिटाकर धूल आईने से
खुद को आईना दिखाते है।।