हम भी पगला से गये
कह गया तू कर इबादत वो ख़ुदा माही मेरा
रुख बदल कर चल पड़ा वो जो अनन्त आदी मेरा
छोड़ दी पतवार मैंने बस इसी उम्मीद पर
थाम लेगा आके मुझको जो बना साथी मेरा
काग़ज़ों की कश्तियों पर चल पड़ी मंज़िल को ओर
रह गया भौचक्का सागर, देख कर मांझी मेरा
झूम कर कहतीं घटाएँ हम भी पगला से गये
तब मचलती लहर बोली खेल बाकी है मेरा
चाँदनी भी चाँद से करने लगी जब गुफ्तगू
नाचती आयी पवन वो गीत गाती है मेरा
©® Dr. Pratibha ‘Mahi’