हम भी क्या दीवाने हुआ करते थे
सुबाह वो ही
शाम वो ही
लगता है वक्त रुका है
या तेजी से गुज़र गया है
कुछ लम्हे
कुछ यादें
कुछ किस्से
कुच बाते।
आज भी जिंदा है
आज भी ताजी है
वो भुलये से
भी भूली नहीं जाती
क्यू के उनमे शामिल है
अपना बचपन
अपनी नादानी
अपनी उमर की वो बते
जब हम हर गम
से बेगाने हुआ करते थे
!!!!!!वाह
हम…भी क्या
दीवाने हुआ करते थे……. शबीनाज़