हम भी कवि है
ये कैसी गुमशुम सी बनी तुम्हारी छवि है ।
बात है क्या तुम बोलो मची ये कैसी खलबली है ।
दूर सब होगी समस्याए तू चलने वाला राही है ।
हमको भी पढो हम भी कवि है ।
सूर्य को बताने की कोई जरूरत नही ।
सब जान जाते है जब पङती रश्मि है ।
सारे अनुभवो को हम पिरो देते है इस माला मे ।
रूकते न कभी घूमता हुआ हमारा चक्र है ।
जिंदगी पर सबको अपने नाज और फक्र है ।
सरनाम की उत्कटता पर सदा कदम भावी है ।
हमको भी पढो हम भी कवि है ।
भले टूटे -फूटे शब्द है ।
पर ज्ञान के भण्डार है ।
पतझड़ मे बसंत के ।
जैसे कोई बहार है ।
काश वो पढे तो ऐसे न होते परे ।
लेखनी को कर से गर पकड़े होते ।
शून्य (गोला) भी बना देते तो समझो वो ब्रह्मांड है ।
पढने -लिखने का भूत सबके ऊपर हावी है ।
हमको भी पढो हम भी कवि है ।
बहती ये हवाए है ।
नदिया कलकलाती है ।
चिङियां चहचहाती है ।
दीपक नही जलता ।
जलता तो बाती है ।
कुत्ते अपने धुन मे भौंके ।
चलता जाता हाथी है ।
कुछ भी कहे कोई हम निमग्न धावी हो ।
हमको भी पढो हम भी कवि है ।
चलना ही जीवन है ।
रूक गये तो मौत है ।
थम जायेगा सब कुछ ।
बाकी सब निश्चेत है ।
समुद्र तट बिखरी हुई सब रेत है ।
समुद्र सामने यहाँ पर्वत भी भयभीत है ।
घीस रहा वो पत्थरो को अपने मे सराबोर है ।
गलत कुछ भी न होगा जब सही आपकी सोच है ।
हमको भी पढ़ हम भी कवि है ।
??Rj_Anand Prajapati ??