हम भारत के लोग
हम रोज गीत गाकर खुशियां मनाने वाले।
अपने ज्ञान से हम जग को जगाने वाले।।
हम हिंद के वासी हैं मां भारती के प्यारे।
अब क्या बताए तुमको हम हैं सबसे न्यारे।।
स्वर्णिम सा रोज सूरज नीद से जगाता।
पक्षियों का रोज कलरव संगीत है सुनाता।।
दूर किसी वन में ऋचा वेदों की गाने वाले।
हम हैं हिंद वाले मस्तक नहीं झुकाते।।
पर्वतों को चीरकर हम रस्ता नया बनाते।
शास्वत हैं जगत में मिटते नही किसी से।।
मां भारती की खातिर कटते हैं सिर खुशी से।
धरती को खोदकर हम फसलें उगाने वाले।।
मिट्टी है इसकी उर्वर लाखों के पेट भरती।
पड़ती हैं जब फुहारे धरती है महका करती।।
मस्तक तिलक हिमालय सागर चरण पखारे।
बन जाए देवता सा जो भी यहां पधारे।।
हम भरत के हैं वंशज सिंह को खिलाने वाले।
जगमग यहां दिवाली रंगो भरी है होली।।
भिन्न भिन्न वेष भूषा सबकी अलग हैं बोली।
लोग हैं हम भारत के नही कोई हमारे जैसा।।
दिल में ना बैर रखते भारत है स्वर्ग जैसा।
दुनियां जहान में हम खुशियां लुटाने वाले।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( m,p,)