हम भला ज़िक़्रे-शान क्या करते
हम भला ज़िक़्रे-शान क्या करते
उम्र की है ढलान क्या करते
असली-नकली ही जब समझ न सके
खोल कर भी दुकान क्या करते
ज़ख़्म का सिलसिला तो जारी था
फिर मिटा कर निशान क्या करते
ख़ुदगरज़ हो गये हैं इतने सब
काम कोई महान क्या करते
बेहयाई की जब हवा ही है
हम भी पर्दों को तान क्या करते
घर है जब टूट ही गया अपना
फिर बनाकर मकान क्या करते
दिल से दिल ‘अर्चना’ जुड़े थे जब
कुण्डली का मिलान क्या करते
डॉ अर्चना गुप्ता