हम पर कष्ट भारी आ गए
दृष्टिहीनों के नगर में नेत्रधारी आ गए
सब लगे कहने कि हम पर कष्ट भारी आ गए
अब तलक तो राजपथ पर सिर्फ आए थे रथी
कौन हैं जो राजपथ पर बेसवारी आ गए
राजभवनों में गया जो उंगलियां उस पर उठीं
भाग्यशाली वो रहे जो निर्विकारी आ गए
धैर्य टूटा है कि सोई प्यास इनकी जग पड़ी
हम गृहस्थों के यहां क्यूं ब्रह्मचारी आ गए
क्रोध का मापांक मेरा बढ़ गया यह देखकर
जब निहत्थों को सताने शस्त्रधारी आ गए
— शिवकुमार बिलगरामी