हम पर्यावरण को भूल रहे हैं
वंशों से जो मिलता आया
हम सदाचरण वो भूल रहे हैं
प्राणवायु मिलती है जिससे
हम पर्यावरण को भूल रहे हैं
प्राणवायु मिलती़…………
दोहन कर रहे नासमझी मे
सभ्यता संस्मरण भूल रहे हैं
प्राणवायु मिलती………….
माँ जैसा आँचल जीवों का
वो शुभ्र आवरण भूल रहे हैं
प्राणवायु मिलती………….
खाते सौगंध बचाने की जो
वो लोग प्रण को भूल रहे हैं
प्राणवायु मिलती………….
“विनोद”लालची दूनियाँ में
सब जीवन-मरण भूल रहे हैं
प्राणवायु मिलती………….