हम परमात्मा को ढूंढ़ेंगे !
हम परमात्मा को ढूंढ़ेंगे !
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किसी तरह ये ज़िंदगी कट जाए…
दिन-रात मैं बस, यही सोचता हूॅं !
राहों के राही की मदद कर जाएं…
ईश्वर से दुआ सदा यही करता हूॅं !!
राहों में बिखरे पड़े हैं रोड़े-पत्थर !
हटाकर जिसे फूलों से सजाता हूॅं !
किसी साथी के पाॅंव ना जख़्मी हों !
इसीलिए ऐसी कवायद मैं करता हूॅं !!
खुद भी जियेंगे, सबको ही अवसर देंगे !
किसी भी प्राणी की हर आह हम सुनेंगे !
आखिर आत्मा तो हर जीव में बसती है !
उन सभी में ही हम परमात्मा को ढूंढ़ेंगे !!
खुशियाॅं जो मिलेगी, सब मिल बाॅंट लेंगे !
हॅंसते खेलते हम सारी ज़िंदगी काट लेंगे !
चार दिन की इस ज़िंदगी में रखा ही क्या है?
निष्प्राण हर प्राणी में हम प्राण फूॅंक देंगे !!
हर प्राणी का जीवन बहुत ही अहम होता है !
पर मनुज को कभी थोड़ा बहुत वहम होता है !
उन्हें लगता है कि उनका ये जीवन ही ख़ास है !
सबको साथ लेकर चलने में बहुत धरम होता है !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 06 सितंबर, 2021.
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