*** हम दिल के मरीज ***
हम दिल के मरीज़ भी कितने अजीब हैं
कहते हैं अपनी बहाना गैरों का करते हैं
चश्मदीद वो अपना नहीं जानते हम हैं
उसे ख़ुदा कहें या ईश्वर रहबर अपना है
काश दोज़ख-जन्नत अलग नहीं होते
फिर शायद हम तुम जुदा ना होते
हम डरते रहे तारीक-ए-रात में यूं ही
पता चला ख़्वाब से चले गये यूँ ही
बड़े कमज़ोर दिल हम है चाहत क्या
तेरी आहट से भला डरे हम क्या
साया हो जैसे ख़्वाब की हकीकत
हम कमज़ोर दिल कहीं मर ना जायें
रखना ख़्याल हम दिल के मरीज़ हैं
डरते दम से हम दिल के मरीज़ हैं ।।
?मधुप बैरागी