हम दिल से ना हंसे हैं।
एक मुद्दत हुई है हमको हम दिल से ना हंसे हैं।
हंसते भी कैसे इतने ज्यादा हमें ये गम ही मिले थे।।1।।
हम उलझे रहे सदा उलझनों को सुलझानें में।
इस जिन्दगी में कभी सुकूं के दो पल ना मिले थे।।2।।
मेरे भी बच्चे खुश होते गर मुफ्लिसी ना होती।
हर घर चस्में चरागा था हमारे घर दिए ना जले थे।।3।।
कैसे बताए कि कैसे उनसे इतनी दूर हो गए।
दूर क्यूं ना हो जाते वो जानें की ज़िद पर अड़े थे।।4।।
अब भी उसकी खुशबू आती है दीवारों दर से।
आए भी ना कैसे वो हमारी रूह से ना निकले थे।।5।।
सफर में और भी हमनवां थे साथ चलने को।
सबही उनसे अलग थे उनमें कहीं वो ना दिखे थे।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ