हम दलित हैं
मेरे घर की छत से अच्छी दिखती थी चांदनी
इसलिए आ जाता था
कभी-कभी वह मेरे छत पर
मैं भी उसके यहां सेवई का स्वाद लेने
जरूर जाता था।
अभी पिछले दिनों
उसकी बस्ती में किसी ने गाय को काटते देखा
तब मुझे पता चला कि वह मुस्लिम है
और मैं हिंदू।
पर कल मेरे दादा जी मुझे बनिया की दुकान से
सरसों का तेल लेने भेज दिये
जब मैं दुकान गया तो पता चला –
मैं दलित हूं।
हिंदू तो वे होते हैं जो
तिलक लगाते हैं
मंदिर जाते हैं
जनेऊ पहनते हैं
मैं तो ऐसा नहीं करता!
निश्चय ही मैं हिंदू नहीं हूं –
मैं दलित हूं।
सुबह भैया अखबार पढ़ रहे थे-
यूपी के एक शहर में
एक दलित बच्ची को
बलात्कार के बाद जिंदा जला दिया गया।
हमारी बस्ती में भी एक बार
टिल्लू के पापा को खूब मारा था –
एक बाम्हन ने।
कसूर इतना था कि समय पर खेती नहीं हो पाई थी ।
हमारी ही बस्ती में मारा था ।
किसी ने उसको नहीं रोका ।
टिल्लू की माई को अगर चाचा नहीं पकड़ते तो शायद वह उस बाम्हन को जरूर मारती।
हम सभी देखते रहे और वह
मार कर चला गया।
केवल बाम्हन ही नहीं मारते
हमारी बस्ती के लोगों को
ऊंची जात के बाकी लोग भी मारते हैं।
वे कहते हैं- तुम लोग बने ही हो मार खाने के लिए।
निश्चय ही हम हिंदू नहीं हैं-
हम दलित हैं।
आनंद प्रवीण
छात्र, पटना विश्वविद्यालय
सम्पर्क- 6205271834