हम तो भटक रहे हैं गली कूचे यार के
हम तो भटक रहे हैं गली कूचे यार के।
शायद इधर से गुजरे कभी दिन बहार के।
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कोई भी दरमियान न हो मेरे और तेरे ।
आंखें तरस गईं तेरा रस्ता निहार के।
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मेरे वफा की तुझको खबर होगी एक दिन।
खामोश तन्हा बैठा हूं दिल अपना मार के।
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मेरे गम ए हयात का किस्सा यह मुख्तसर ।
शिकवा सुने सगीर कौन दिल फिगार के।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी
खैरा बाजार बहराइच यूपी