*** ” हम तीन मित्र ………! ” ***
* मेरे दो मित्र , शेखर और विशाल ,
तीसरा मैं स्वयं काँजीलाल ।
थे ‘ माँ-बाप ‘ के एक अकेला-लाड़ला संतान ,
और मूर्खता में भी थे अति महान।
आस-पास रहते थे ,
एक ही स्कूल में पढ़ते थे ।
हमेशा ही कुछ उल्टे-सीधे हरकत करते रहते थे ,
और परिणाम से भी बहुत डरते रहते थे ।
समय गुजरता गया ,
मित्रता का बंधन बढ़ता गया ।
हम तीन बड़े ही धांसू थे ,
विचित्र चिंतन के जिज्ञासू थे।
बौद्धिक जन चेतना के कई ,
सामाजिक प्रयास हुए ।
फिर भी हमारे चित-चिंतन में ,
न कोई और विकास हुए ।
** ग्रीष्मकालीन का समय था ,
हम त्रिसठ ( तीन मूर्ख ) जंगल की ओर जा रहे थे।
रास्ते में एक घर था ,
कुछ कद्दू फल (pumpkin) घर को , सुंदर सजा रहे थे ।
कद्दू-फल आकार में बड़ा था ,
लेकिन.., पेड़ उसका तुलनात्मक छोटा था।
प्राकृतिक संरचना ,, हमें विचित्र लगे ,
ईश्वर और उनकी रचनाओं को हँसने लगे ।
फिर हम त्रिमूर्ति आगे ( जंगलकी ओर ) बढ़ते गये ,
एक बार नहीं, बार-बार अपने विचार में उलझते गये।
*** राह में एक मानसरोवर मिला ,
पानी देख , प्यास बहुत लगने लगे ।
पीकर पानी , मन तृप्त हुए ;
पीपल की छाया में , हम आराम करने लगे।
डाल में कुछ फल (पीपल के) नजर आए ,
और फिर क्या.. पुनः , हम हँसने लगे।
ईश्वर भी , कितना मूर्ख है ;
हमसे भी , ज्यादा धूर्त है ;
एक दूसरे से कहने लगे ।
अचानक , पका फल नीचे गिरने लगा ,
एक, मेरे मित्र शेखर के आँख में लगा।
ओ एक आँख से दृष्टिहीन हुए ,
मित्र होकर भी हम सहायक विहीन हुए ।
बात , हम तब समझ पाए ,
जब मित्र ने अपना एक आँख गंवाए।
हम थे , कितने धूर्त गंवार ,
नहीं समझ पाए , प्राकृतिक रचना के आधार।
पर…! ‘ वही है एक ‘ (ईश्वर) , रचना के सूत्रधार ।।
उनकी रचना में परिकलन , आंकलन ;
और एक परिमाप होता है।
उनके प्रकृति और विचार में ,
कभी खोंट नहीं होता है ।
काश…..! , यदि ओ पीपल का फल ;
कद्दू की तरह भारी होता ।
उसी क्षण , उसी पल , उसी दिन, वहीं पर ;
हमारा अंत होता ।
वहीं पर हमारा अंत होता ।।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ. ग .)