हम जैसों की कोई।
हम जैसों की कोई नहीं है यारो ज़िंदगी।
एक तो बिगड़ी किस्मत ऊपर से ग़रीबी।।1।।
खुदा भी साथ दे तो क्यूं साथ दे हमारा।
मैं कौन सा ठहरा उनका बड़ा इबादती।।2।।
कैसे चुप-चुप से है वह मिलने पर हमारे।
कुछ तो बोले अगर कोई बात है जरूरी।।3।।
जाकर के तो देखो क्या हुआ है पड़ोस में।
जाने क्यूं इस बार नही आयी वहाँ से ईदी।।4।।
मेरा उनसे मिलना किसी काम का नहीं।
सुना है मैंने सबसे वह तुम्हारा है करीबी।।5।।
उनकी शानो शौकत पर होता था भरम।
मिलनें पर पता चला आदमीं हैं ज़मीनी।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ