हम जैसे शायद दिवाने नहीं है
खुला छोड़ा था जिनको दरवाजा अन्दर वो अभी तक आये नहीं है
हमने तो अपनी कहानी बता दी पर जज्वात उनने जताए नहीं है
वो नागिन के जैसी बलखाती चाले बाल अभी तक संभाले नहीं है
तुम्हारे तो पीछे जमाना है पागल पर हम जैसे दिवाने नहीं है
जान देने को तैयार है काफी पर सम्मा के काबिल परवाने नहीं है
पीने वालो की तो लम्बी कतारे लगी है पीने काबिल पैमाने नहीं है
कवि गोपाल पाठक ”कृष्णा”