हम जिस दौर में जी रहे हैं उसमें बिछड़ते वक़्त
हम जिस दौर में जी रहे हैं उसमें बिछड़ते वक़्त
अलविदा कहने का रिवाज़ नहीं बचा हैं ।
अब हम बिछड़ते भी तो नहीं हैं ना। हम मैसेज का
जवाब देना बंद कर देते हैं। फ़ोन उठाना भी । कुछ
और हुआ तो ब्लॉक कर दिया। सच तो ये है कि हमें
बिछड़ना आता ही नहीं हैं। हमें बस भागना आता हैं
रिश्तों से भी और उसमें आने वाली किसी समस्या से भी ।
रिश्तों में इतनी गर्माहट तो बची होनी चाहिए कि
बिछड़ते वक़्त एक बार अलविदा कहा जा सके
और इस तहज़ीब से कहा जा सके कि
अगली मुलाक़ात में अगर फिर से हेलो कहना हो
तो कम से कम कह सके। पता नहीं हमने कब
“कभी अलविदा ना कहना” को इतनी गंभीरता से ले लिया।
हम भी ना जाने बातों के मतलब कैसे निकाल लेते हैं।
खैर, सोच के देखना, कोई तो याद आएगा जिसको
अलविदा कहना रह गया हो।🙏
#yaadein