हम घर जा रहे हैं, हमें घर जाना है
हम घर जा रहे हैं, हमें घर जाना है।
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चलते सड़कों पर हम, विवश पड़े हैं
मज़दूर हैं साहब! बस पड़े-के-पड़े हैं
दाना भी है पानी भी, बस ज़रा-ज़रा सा
घूट रहे हैं थूक, गले भरे-के-भरे हैं
दो रोटी देकर चले जा रहे हैं, कुछ
सुना है खबरों में बड़े छा रहे हैं, कुछ
टूटे जूते, पुराने चप्पल और फ़टी पैंट
आँसू भी थे जो, सूखे जा रहे हैं..
कुछ कल आये थे, कुछ कल भी आएंगे
दुर्दशा हमारी, सबको दिखलायेंगे…
कोई उल्लू करेगा टेडा, कुछ हूँ-ब-हूँ बताएंगे
कुछ गाना गाएंगे, कुछ गाना बजायेंगे
कोई आह! बस भरेगा, कोई झूठे आँसूं भी
दिलासा कोई, कोई साँत्वना मात्र भी..
सुना है! टीवी-चैनलों पर बहस हो रही है
कोई मज़दूरों का है, किसी की मजबूरी हो रही
वो उधर से इसे कोस रहा, ये इधर से उसे कोस रहा..
राजनीतिक दलों की लीपा-पोती हो रही..
तीन लोग कल भी आये थे, संग कुछ खाने को लाये थे
फूल था, झाड़ू था,और हाथ भी चिपकाए हुवे
ये सब था, उन पर, बाहर से रैपर लगाये हुवे..
हम घर जा रहे हैं, हमें घर जाना है..
तुम देश बचाओ, हमें खुद को बचाना है..
कुछ साथी मज़दूर सोते-सोते सो ही गए
अज़ीब सा छाप हमेशा के लिए छोड़ ही गए..
हम भी चल रहे हैं, हमें तो बस जाना है..
यकीं है हमें भी, बस जीते जी मर जाना है।
✍️Brijpal Singh
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