हम खरी खरी बोले हैं
मुक्तक
मन में कपट हाथ में औषधि, आडंबर के चोले हैं।
बात कहाँ पक्की करते वे , बार – बार ही डोले हैं।
घर जाकर फटकार दिया यदि, दिखा दिया दर्पण उनको।
इसमें कौन बुराई है हम, खरी – खरी ही बोले हैं।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)