हम किसको वोट करें
हम किसको वोट करें? यह प्रश्न सारे व्यक्तियों के मन में उठ रहे होंगे। जो अनपढ़ हैं उनके मन में भी, जो पढ़े लिखे व्यक्ति हैं उनके मन में भी, जो बेरोजगार हैं उनके मन में भी, जो स्वरोजगार हैं उनके मन में भी और जो नौकरी कर रहे हैैं उनके मन में भी।
आप एक अंदाजा यह लगाते होंगे कि जब चुनाव नहीं रहता है तो हम सब विकास-विकास करते हैं, विकास की खोज करते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव आता है तो सारे विकास को भूल जाते हैं और जात-जात में बट जाते हैं। यह मेरे जाति का उम्मीदवार है उसको वोट देंगे, मेरे जात की उम्मीदवार को सीट नहीं मिला हम उस पार्टी को वोट नहीं देंगे। इस तरीका से हरेक व्यक्ति के अंदर ऐसा स्वभाव स्वाभाविक रूप से आ जाता हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि चाहे वह मेरे जाति का उम्मीदवार हो, चाहे अन्य जाति का उम्मीदवार हो। वह अपनी तरफ से कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि जो सरकार योजनाएं लागू करती है उस योजना को पूर्ण रूप से अपने क्षेत्र में धरती पर उतारती है इतना तक वह काम करती है। और यह हम सभी जानते हैं तो जब हम विकास की रट लगाते हैं तो फिर क्यों जात के नाम पर चुनाव आते ही भटक जाते हैं?
हम जैसे पढ़े-लिखे व्यक्तियों को किसी भी तरह की जाति के नाम पर वोट कभी भी नहीं करना चाहिए। हमें अगर वोट करना चाहिए तो सिर्फ राष्ट्र के नाम पर और राष्ट्रवादी पार्टी को ही वोट करना चाहिए। क्योंकि आप जानते हैं? कि जयचंद जब पृथ्वीराज चौहान को हराने का कसम खाया था तो वह यह नहीं सोचा था कि हम पृथ्वीराज चौहान को ही केवल हरा रहे हैं या अपने आप को भी हरा रहे हैं? उनके अंदर मात्र यह बैठा था कि हम पृथ्वीराज चौहान को हरा रहे है। अगर वह यह सोचा होता है कि हम पृथ्वीराज चौहान को नहीं बल्कि अपने आप को भी हरा रहे हैं तो वह ऐसा गलती कभी नहीं करता। और मोहम्मद गौरी का साथ कभी नहीं देता लेकिन हुआ वही जो होना था। जयचंद, पृथ्वीराज चौहान को हराने के लिए मोहम्मद गौरी का साथ देता है और 1192 में मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान को हराकर के उस पर विजय प्राप्त करता है। इसके बाद जयचंद को भी हाराता है और जयचंद के राज्य को भी अपने राज्य में सम्मिलित करता है। इस तरह से भारत में मुसलमानों का राज चलने लगा और भारत का शासक मुसलमान वंशावली होते रहे जैसे कुतुबुद्दीन ऐबक, इब्राहिम लोदी, बाबर, अकबर, औरंगजेब इत्यादि।
अगर कोई कहता है कि भारत लगभग 200 वर्षों तक गुलाम रहा तो वह बिल्कुल गलत कहता है क्योंकि भारत लगभग 200 वर्षों तक गुलामी नहीं रहा बल्कि 1192 में पृथ्वीराज चौहान की हार होती है उसके बाद से भारत गुलामी के जंजीरों में बंध गया और वहीं गुलामी की जंजीर 1947 में टुटी और हमें आजादी के रूप में मिली वह भी दो टुकड़ों में बांट कर के मिली। मुसलमानों के लिए पाकिस्तान और हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान।
अगर जयचंद उस समय सोचा होता कि हमारे आने वाले भविष्य में हमारे वंशज इतने वर्षों तक गुलामी करेंगे तो वह कभी भी मोहम्मद गौरी का साथ नहीं देता चाहे कितनाहु पृथ्वीराज चौहान और उनके बीच बैर होता।
इसलिए हम आप सभी से यह कहना चाहते हैं कि आप जयचंद मत बनिए और जयचंद जो गलती किया वैसे गलती ना करें, नहीं तो पता नहीं फिर हमारे वंशजों की कितनी गुलामी झेलनी पड़ेगी यह हम सोच नहीं सकते?
अगर आपको यह भी समझ में नहीं आता है तो आप वर्तमान में उदाहरण स्वरूप महाराष्ट्र को देख सकते हैं कि वहां पर जब एक राष्ट्रवादी पार्टी, एक हिंदुत्व पार्टी की सत्ता जब हाथ से गई और गठबंधन की सरकार बनी तो वहां पर हिंदुत्व की आवाज उठाने वाले लोगों के साथ किस प्रकार व्यवहार किया जा रहा है?
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳