किताबों में मिलेंगे
चमेली में मिलेंगे ना गुलाबों में मिलेंगे
ग़ज़ल से इश्क़ वाले हैं किताबों में मिलेंगे
सफर में भूख की ख्वाहिश वहां लेकर गई थी
जरूरी तो नहीं मयकश ही’ ढाबों में मिलेंगे
हमें बर्बाद करके क्यों ठिकाना पूछते हो
तुम्हें हम आजकल खाना ख़राबों में मिलेंगे
यह सोशल मीडिया फन का कबाड़ा कर रही है
तक़ी, ग़ालिब, जिगर, फ़ानी किताबों में मिलेंगे
नहीं पाबंदियों का कोई भी हमको मलाल
लगे हों लाख पहरे तुमसे’ ख्वाबों में मिलेंगे
हमारे ज़हन पर भी है सवालों का ज़ख़ीरा
बहुत मजबूर है फिर भी जवाबों में मिलेंगे