हम कितने आजाद
आजादी के पर्व पर,सुन माँ की फरियाद।
चीख-चीख कर कह रही, हम कितने आजाद।।
पूर्ण रूप से है नहीं, अभी देश आजाद।
जाति-धर्म के नाम पर, दंगा कहीं फसाद।।
तड़प रही माँ भारती,है दुख से बेहाल।
सीना छलनी कर रहे,आज उन्हीं के लाल।।
राज्य कर रहा है कुटिल,सत्ता बेईमान।
विकट हाल है देश का, फाँसी चढ़ा किसान।।
लूट-लूट धन देश का, नेता करते मौज।
भूखी-प्यासी मर रही,नित जनता की फौज।।
मानवता गिरवी पड़ी, कलयुग की सरकार।
न्याय नहीं मिलता हमें,झूठों का बाजार।।
बीच सड़क पर हो रहा, नारी का अपमान।
स्वर्ग नर्क सा बन गया,टूट रहा अभिमान।।
हमको अपने देश पर,सदा रहा अभिमान।
जाति-धर्म के नाम पर,भस्म हुआ सम्मान।।
बढ़ा गरीबी भुखमरी,बेकारी का शूल।
सत्य अहिंसा प्रेम को,बना दिया है धूल।।
मंदिर-मस्जिद नाम पर, बाँट लिया भगवान।
धरती सागर बाँट ली,मत बाँटो इंसान।।
देश द्रोह की बू भरी,चलते गंदी चाल।
बहा दिया ईमान को, सियासतों के नाल।।
राह नजर आती नहीं, मंज़िल बैठी दूर।
उजियारा बंदी बना, हर दीपक मजबूर।।
प्रश्न चिन्ह तो है बहुत, जल्दी करो निदान।
माँ के खोये अस्तित्व का, फिर से हो सम्मान।।
दाग बड़ा गहरा लगा, यार गुलामी नाम।
छिन लेती है जिन्दगी, जब हो देश गुलाम।।
खुद को पहचाने प्रथम, फिर पहचाने देश।
बने दमकता सत्य फिर,हो सुन्दर परिवेश।।
भारतीय दिल से बने, हो भारतीय ख्याल।
होगा फिर आजादी दिवस, आगामी कुछ साल।।
-लक्ष्मी सिंह